Tuesday, 25 December 2012
Monday, 19 November 2012
मै जी रहीं हूँ
एक अलग सी औरत
जो मेरे अन्दर ही बसर करती है
जीती है
एक अनाम सा
निशर्त रिश्ता
जो तय करता है
बिना मुझसे पूछे
किस से कब मिलना है
किस से कब बातें करनी है
और कब उठ कर
चले जाना है
अब तक जिए सारे रिश्तों से
सारे ओहदों से
अलग है
कुछ रंग जुदा हैं
कुछ स्वाद अजीब है
पर है अनोखा
आसान बनाता
जीवन
'ईश्वर '
अब कोई शिकायत नहीं
मै तेरी' रज़ा '
में 'राजी' हूँ
सच मानो
पहले
जब पकडती थी
ज़िन्दगी की कड़ियाँ
और कस के रिश्ते
वो हाथ से छूटे जाते थे
अब जब छोड़ दिया
मुठ्ठी बांधना
आ आ के
मेरे साहिल से
ख़ुशी बन लिपटते हैं
Thursday, 8 November 2012
कुछ याद आता है .....
प्यार 'था '
नहीं' है '
अब भी है वही अहसास
जब तुमने कहा था
कहाँ दूर जा रहा हूँ
एक ही ब्रम्हांड में हैं
'पग्गल'
वही सूरज देखेंगे
वही चाँद
और बांध लेंगे
भावनाओं पर बाँध
मै चाहती थी तुम कहो
मै तुम्हे याद करूँगा
तुमने कहा
'कहाँ भूलूंगा '
जब कोई बच्चा बारिश के छीटें उडाएगा
माली की नज़र बचा कर
एक गुलाब तोड़ लायेगा
दरवाजे पर खड़े रोटी मांगते बच्चे को
पूरा पर्स पकडाये गा
मुझे तुम दिखोगी
भूतनी
और बस युद्ध शुरू हो जाता
एक दुसरे के पीछे
भागते
कभी कभी लगता है
शायद कई जन्मों से दौड़ रही
तुम्हारे पीछे
तुम उस समय भी ताक़तवर थे
आज भी हो
और मैं भाग भी रही कुछ कम गति से
की तुम्हे कभी न पकड़ सकूँ
मुझे ऐसा ही रहना है
तुम्हारा ध्यान भागने में हो
मेरा ध्यान पकड़ने में
और हम दोनों 'ध्यानी ' के बीच कोई न हो
Tuesday, 6 November 2012
ये चुप्पा चाँद ..:)
एक चाँद रात
जब अचानक लाइट गुल हुई थी
तुम चुपचाप हाथ पकड़ छत तक ले गए
इश्क की शुरुवात के दिन थे
और पहले से लाई जलेबी खिलाई थी
शायद पिछली रात ही तो फरमाइश की थी
मुझे याद है
वो उम्मीदों के दिन
जब रातबेरात कुछ भी खाने का जी करता था
और दुसरे दिन तुम ले ही आते
किसी भी तरह
और देर रात छत जाना
एक काम बन गया था
सबकी नज़र बचा कर
जाने कितने मधुर क्षणों का गवाह बना
ये चुप्पा चाँद
कई मनमुटाव भी सुलझाये हमारे
आखिर सियामी बने
कमरे की दीवारें कुछ कहते ही चुगली खाती थी
तब छत ही होता था सुरक्षित कोना
कहने सुनने की जगह
चाँद के सामने सरे तंज छट जाते
रेशम सी फिसलती चांदनी
शीतल कर देती मन का कोना
चाँद गजब का राजदार निकला
कभी किसी से कुछ नही कहा
बस सारे राज चुपचाप
अपनी डायरी में नोट करता
न सलाह देता न मशविरा
और दिन की रौशनी में अनसुलझे धागे
चाँद की मध्धिम रौशनी में सुलझ जाते
वो अब भी परेशानियों में
अपना कन्धा देता है
टिकाने को
अब भी
नज़र मिलते ही मुस्कुरा उठता है
कौन देता है आखिर इतना साथ ...
Wednesday, 12 September 2012
नदी सिखाती है ...
पता नहीं कैसे दिन आ गए आप कहतें हैं सब अच्छा चल रहा तो कोई भरोसा नहीं करता ...:)आप सहज रूप से यदि समझौते करते हैं तो ये बंधन ना लग के एक अनोखी ख़ुशी देते है | मुझे प्रकृति का सानिध्य अच्छा लगता है घर से बमुश्किल १०० मीटर की दूरी में एक नदी बहती है वो अक्सर अपनी फीलिंग्स शेयर करती है मेरे साथ ...एक बहुत बड़ा बांध बना आंकड़े कहते हैं करीब चार सौ गाँव को इनका फायदा मिलेगा हाँ मै सिर्फ पोजिटिव ही इकठ्ठा करती हूँ ...दिमागी खलल है शायद ..:)..मैं विषयांतर नहीं करते हुए नदी की बात करूंगी...:) मुझे प्रकृति हमेशा सब से बड़ी शिक्षक लगी है...मेरे विषय में यही शामिल होता है
कितने दरिया
कितने दरिया
कितनी घाटियाँ
फर्लान्ग्ती आयी थी वो
जैसे सब कुछ
बहा कर ले जाना चाहती थी
अच्छा बुरा
सब
एक आध्यात्मिक भावना से
नदी
उसे व्यावहारिक ज्ञान नहीं समझा था
खुद को वेगवती समझने वाली
उस'वन्या' को
आगे जा कर थमना पड़ा था
एक बाँध की कगार में
लेट कर वो सोचती है
क्या यही प्रारब्ध है
......और फ़िर खो जाती है
असंख्य नहरों और पनचक्कियों पर
ये सोचते उसे अच्छा लगने लगता है
मै क्या कर लेती
समुन्दर से मिल के
थोड़ी मिट्टियाँ झाड़ लेती
बस ना
आज रुकी हूँ
तो इतनो का भला हो रहा है
यदि ऐसा है तो मै यहीं सही
और वेगवती की ठांठे मारती लहरें
खामोश हो जाती हैं
पत्थरों के दीवार के पार से मुस्कुराते
वो अब अपने रूप का विस्तार देख रही थी
Sunday, 2 September 2012
शाम की बेचैनियाँ....
'जब एक ढलते शाम की बेचैनियाँ सताती हैं '
उड़ने दो स्वछन्द गगन में
कल्पनाओं की वीथिका में भटकने दो
मुझे मुझमे खुद को तलाशने दो
सारी कोशिशे मेरे सीखने की है
शायद
तुम भी गुजरे होंगे इन गलियों से
एक घुटन
एक बेचैनी को महसूस होगा
जब सारा जहाँ एक पिंजरा सा लगा होगा
ये वैसा ही सफ़र है
मुझे चलने दो
बस ....
बिना कुछ कहे
आखिर तुम भी जानते हो
'विलंबित' हो या' द्रुत
'सम' पर ख़त्म हो जाता है
Thursday, 16 August 2012
बड़ी आस थी
मिलन की
नदी की आँखों में
जाने कहाँ कहाँ से बहती आयी थी
आशाएं और सपने लाई थी
सागर को पहले पहल देखा होगा
तो सहमी होगी
धरा की कोख से निकली ,
धरा को भूलना होगा
जिन लहरों से डरती थी
उनकी ताल में झूमना होगा
साथ कई नदियाँ बहती थी
अलग अलग से रूप जिनके
कोई स्थूल कोई दुर्बल सी
कई मटमैली कोई निर्मल सी
सारा कुछ 'वार ' दिया
नदी ने
और पाया एक अलग सा सुख
अन्दर ही अन्दर सालता था
सफ़र ख़त्म होने का दुःख
उसे दुःख को सुख में बदलना आता था
सूरज की गेंद खेलती .छुपाती
लहरों पर चढ़ घूम आती थी
बहुत याद आये तो ...
धरा को चूम आती थी
मिलन की
नदी की आँखों में
जाने कहाँ कहाँ से बहती आयी थी
आशाएं और सपने लाई थी
सागर को पहले पहल देखा होगा
तो सहमी होगी
धरा की कोख से निकली ,
धरा को भूलना होगा
जिन लहरों से डरती थी
उनकी ताल में झूमना होगा
साथ कई नदियाँ बहती थी
अलग अलग से रूप जिनके
कोई स्थूल कोई दुर्बल सी
कई मटमैली कोई निर्मल सी
सारा कुछ 'वार ' दिया
नदी ने
और पाया एक अलग सा सुख
अन्दर ही अन्दर सालता था
सफ़र ख़त्म होने का दुःख
उसे दुःख को सुख में बदलना आता था
सूरज की गेंद खेलती .छुपाती
लहरों पर चढ़ घूम आती थी
बहुत याद आये तो ...
धरा को चूम आती थी
Wednesday, 1 August 2012
तुम्हारे साथ ....:))
मै एक पूरा दिन गुजारना चाहती हूँ
तुम्हारे साथ
मै सूरज की रौशनी में तुम्हे देखना चाहती हूँ
मै देखना चाहती हूँ
हमे शहर की सड़के एक साथ देख कर
क्या कहती हैं
मै उस पार्क की बेंच को चिढाना चाहती हूँ
जो अकेले बैठने पर मुंह छुपा कर हंसती थी
मै सड़क पर खड़े हो कर
बारिश में गरम सिंके भुट्टे चखाना चाहती हूँ
मैंने कई बार मुह्सुसा है तुम्हे बहुत पास
अब दुनिया को तुम्हे दिखाना चाहती हूँ
चांदनी में कई बार भीगी हूँ तुम संग
आज तुम्हे दिन की रौशनी में नहलाना चाहती हूँ
Monday, 16 July 2012
चुप्पी का तिर्सठ्वा अर्थ ..
मै समेट कर रख लूँगी
तुम्हारी चुप्पियाँ
और यादों से कहूंगी
बहना बंद करो
पत्थरों से पानी नहीं निकलता
तुम्हारी कोहनियाँ छिल जाएँगी
लहूलुहान हो जाएँगी
आंसुओं के सूखने के बाद
नमक नहीं बहता
बस जम जाता है
मन के किसी कोने में
यादों की ईंट चिन कर
एक नमक का बांध बनाना है
ये दर्द फ़िर नहीं गुनगुनाना है
बिना किसी शिकायत के जीना है
और
और
जाते समय
सारा कुछ साथ लेकर जाना है
Wednesday, 11 July 2012
बिंधा मन ...
तुमसे बिछड़ कर जाना
महज याद करना
और समय गुजारना ही जीवन नहीं
तुमसे ही सीखा
खुद से लगाये गए
बेल को ख़त्म करने के लिए
जरुरत नहीं पड़ती औजारों की
सिर्फ एक छोटा तेज चाकू
काट सकता है उस पतले से तने को
रोक सकता है
पानी का परिवहन
और हलाल हो जाता है एक रिश्ता
तुम तो यूँ चले गए
जैसे कभी कोई वास्ता नहीं था
शायद नहीं था
तब ही तुम जा सके
ये मेरा मन भी समझने लगा है
Sunday, 8 July 2012
यादें थी ...
मेरे गले में पड़ी
वो तीर्थ यात्रा से खरीदी
सस्ती
बारीक मोतियों की गुथन
जो एक रोज टूट गयी
तुम्हारे उँगलियों की छुवन से
बिखर गए थे मोती
मै रो पड़ी थी
तुम समझ नहीं पाए
मै कह नहीं पाई
वो सिर्फ 'माला ' नहीं थी
मैंने 'वायदे ' पहने थे
भूल जाने के
माला तो टूट गयी
पर वो मोतियाँ
फर्श पर नहीं बिखरी
मेरी देह ने सारी मोतियाँ सोख ली
और वो वायदा भी
जो बिछड़ते समय
नम आँखों से किया था
तुम्हे कभी कभी याद नहीं करूंगी
Wednesday, 27 June 2012
Black Coffee...:(
तुम्हारे बगैर
मुझसे नहीं गटकी जाती
ये काली काफी
जैसी शाम
पर अकेले रह कर
यही पीती हूँ
डर लगता है
खूब सारी क्रीम के साथ
गटकते हुए
यदि मूंछे बन गयी तो ???
कौन बताएगा ?
कौन पोंछ जायेगा
अपनी लम्बी सी तर्जनी से
सबकी नज़रे बचाते हुए
और
चुपके से
स्पर्श की एक लकीर
मेरे शर्माए से चेहरे पर छोड़ते हुए
Sunday, 24 June 2012
Turning point...
एक अजीब सा मोड़ था
जब उसने कहा 'प्रेम '
और
एक तन
सिकुड़ कर खोह में धंस गया
कुछ दिनों बाद
सर फ़िर निकला
फिर सुनी वही आवाज़
मैंने 'देह' कब कहा
मैंने सिर्फ 'प्रेम ' कहा
अब वो 'तन आश्वस्त सा
बाहर आया
एक नया मोड़ था
जहाँ से क़दम कभी नही गुजरे थे
हरी भरी सी वादियाँ
साथ साथ रखते क़दम
तय करते रहे जन्नत का फासिला
प्रेम कहने वाला
मन से कब तन तक पहुंचा
और रग रग में उतर गया
और फ़िर
................
...............
कब जी भी भर गया प्रेम का
पता ही नहीं चला
एक दिन आखिरी मोड़ आया
प्रेम का
उसने कहा
मुझे जाना है
शायद किसी मोड़ तक ही वायदे थे उसके
और तमाम प्रेम कहानियों में 'जाना '
सिर्फ एक ही तय करता रहा है
बस जाने दिया
अब रास्ते हैं
सन्नाटें हैं
और ढेर सारी रेत
आँखों में गड़ती
जी दुखाती
और खोल में सिमटा
एक आहत मन
कब जी भी भर गया प्रेम का
पता ही नहीं चला
एक दिन आखिरी मोड़ आया
प्रेम का
उसने कहा
मुझे जाना है
शायद किसी मोड़ तक ही वायदे थे उसके
और तमाम प्रेम कहानियों में 'जाना '
सिर्फ एक ही तय करता रहा है
बस जाने दिया
अब रास्ते हैं
सन्नाटें हैं
और ढेर सारी रेत
आँखों में गड़ती
जी दुखाती
और खोल में सिमटा
एक आहत मन
Saturday, 23 June 2012
दिन और रात..मेरी नज़र ..:))
सूरज कहीं नही जाता
धरा भी कहीं नही जाती
दोनों साथ ही रहते हैं हमेशा
मिलते है रोज
जीवन की तरह
जीवन के आयामों के तरह
आने जाने वाली भावनाओं की तरह
आखिर कुछ भी तो स्थिर नहीं होता
ना धरा की गति ना सूरज के तेवर
सुबह उनके मिलन की
खुशियों की घडी होती है
रात धरा सारी आंच
अपनी पीठ पर झेलती है
और ये सिर्फ हमारी खुशियों के लिए
ये सचमुच ..
उनके लिए मायने रखती है
Friday, 22 June 2012
एक पत्ता सूखा सा ....
Thursday, 21 June 2012
Wednesday, 20 June 2012
'ईश्वर '..
Monday, 18 June 2012
......आखिर कब तक..
Thursday, 14 June 2012
सापेक्षता का सिद्धांत ..
ये बात कल उस कछुए ने बताई
जिसका जीवन
कम से कम चार दशकों का था
कि
गिलहरियाँ अच्छी प्रेमिका नहीं बन सकती
उनकी सोच एक पेड़ और
उसके इर्द गिर्द ही होती है
उन्हें अपने परिवेश से प्रेम सिखाया गया है
उन्हें प्रेम में सापेक्ष या निरपेक्ष होना नहीं सिखाया गया
उन्हें सिखाया गया है
इस सीमा से दूर नहीं जाना
उन्हें ये भी सिखाया गया की
अच्छे बीजों की तलाश में
दूर जाना खतरनाक हो सकता है
Tuesday, 12 June 2012
तह किया वजूद.....
अपने वजूद के कुछ टुकड़े
मुझे भी दिखाई देते है
दरवाज़े में टंगे name plate में
उन फूल पत्तियों के बीच
खूबसूरती से उकेरे नाम में
देर से आने पर
तुम्हारी मीठी सी उलाहना में
आखिर बच्चो के
व्यव्हार,
प्रदर्शन
में भी तो शामिल है मेरा वजूद
घर के अन्दर
बिखरे हर चीज़ में ढूंढ़ लेती हूँ
अपना वजूद
और तह कर के रख देती हूँ
ताकि समय पर
तुम दिखा सको मुझको मेरा वजूद
Saturday, 9 June 2012
इश्किया ....
कई दिन तेरे सपनो को
ख्यालों की हांड़ी में उबाला
वास्तविकताओं से छौंका
पक कर तैयार होता
तुमने खींच दी
एक फासले की खंदक
और भर दिया पानी से
ताकि ना पहुंचे
तेरे ख्वाबों तक
मेरे ख्याल भी
हाँ तू गुनाहगार है
मेरा
और उस रब का भी
जिसे मैं इश्क कहती हूँ
और उसने ही तुझे बख्शा है
उम्र भर का बंजारापन
भटकता रहेगा ...
पता नही कितने जन्मों तक
मैंने तेरे लिए ये सजा नहीं चाही
ये रब का फैसला है
और तेरे साथ साथ
भटकेगी मेरी भी रूह
सब कुछ होते हुए
Wednesday, 6 June 2012
तुम्हे ढूंढते हुए.....:))
Tuesday, 5 June 2012
बिना शीर्षक .....
Friday, 1 June 2012
कई बार रोने पीटने वाली कवितायेँ पढ़ कर एक दबी सी आह निकल आती है ...बाबू जो इत्ती शिद्दत होती ना...और अल्लाह मियां मेहरबान होते तो तुम वो chance भी miss नहीं करते ..खैर ज़िन्दगी दोबारा ..उहूँ... कई बार मौके देती है जरुरत है पकड़ने की...
क्या शकल बना रखी है
क्या शकल बना रखी है
'ज़िन्दगी '
उठ
जाग
और समझ
स्यापे से 'गये' हुए
नहीं लौटते
[स्यापा ...शोक करना ']
Thursday, 31 May 2012
मैं ख़ुशी हूँ ...
मुझे नहीं आता घुमा फिरा कर कहना
ये जानती हूँ
जीने के लिए
आसपास
खुशियों का होना जरुरी है
और मेरी सारी कवायद
खुशियों के लिए है
आपकी और मेरी खुशियाँ
आप दूर रह कर सोचते होंगे
आप मुझे तंग कर रहे
अब ये सोचियेगा
इतनी देर खुशियाँ भी तो
नहीं मिली आपको
क्यूँ...
मेरा नहीं अपना सोचिये
खुद को खुश रखना आ जायेगा जिस दिन
आप मेरा ख्याल भी रखना शुरू कर देंगे ...:))
Wednesday, 30 May 2012
एक लम्बी कविता ....unedited
जब कभी दोपहर देर से जागना हुआ तो रात बड़ी मुश्किल हो जाती है बाहर जा नहीं सकते in laws को लगता है झगडा हुआ है..बच्चे भी ऐसा ही कुछ सोचते है उनके कमरे आ कर disturb करो तो...बस मन मार कर पड़े पड़े 'विचरण ' करते रहो..conscious world से sub ...कभी semi conscious तक ....कई बार मैंने खुद के शरीर को दूर से देखा बिलकुल सुन्न सा..
कल भी कुछ ऐसा घटा
ये शायद sub conscious stage थी ....
मेरी रूह को
जिस्म का पैरहन उतार कर जाते देखा
मिलने
उस जिस्म तक
जिसका अता पता बरसों पहले याद था
याद क्या
शायद सोचा होगा ...:))
semi conscious....
उफ़..
अचानक 'वैभव ' याद आया
वही जो एक नम्बर वाले क्वार्टर में तब रहने आया
जब मै 9th में थी
और उसे अपना पहला boy friend मानती थी
अरे कुछ और नहीं
वो यूँ की
वो लड़की तो था नहीं
जो सहेली बनता
इसलिए दोस्त
और फ़िर चिढाने के लिए boy भी जोड़ दिया
हाँ एक बात और
बाद में हर जगह नज़र आने के कारण
उसका नाम 'भूत' पड़ गया
दिन , रात . सुबह शाम
स्कूल के पास
सहेली के घर के पास
या कोचिंग के पास
ये अलग बात है
मै भी तब तक
girl friend से चुड़ैल बन गयी
उसने शहर से जाते जाते बताया था
उसके सपने में आने वाली
चुड़ैल का चेहरा मुझसे मिलता है
अचानक घडी पर नज़र जाती है
और रात के २ बज रहे देख कर
जी घबरा ही जाता है
'माँ 'याद आती है.
रात १२ से २ तक निशाचर घूमते हैं
और एक प्रार्थना में हाथ जुड़ते हैं
हे भगवान् ...वैभव को ठीक रखना
आज इस बात को
शायद दो दशक से ज्यादा बीता
लगा भी नहीं था
क़ि ज़िन्दगी की किसी रात के
ऐसे पल में वो याद आएगा
खैर....
चित्र बदल रहे
खुद को पीले सूट में देखती हूँ
शायद कोई कबीला जैसा कुछ
पैरों में राजस्थानी मोजडी
ये शायद पंजाब राजस्थान के बीच का कोई गाँव है
ऐसा कुछ संकेत है
मै कुछ मेमने लिए बैठी हूँ
एक रास्ते पर
शायद इंतज़ार है किसी का
और वो दिखता है
हाथ में क्रांति आज़ादी क़ि तख्तिया लिए
एक गोरा सा लड़का
कंजी आँखों वाला
दिमाग में जोर डालती हूँ
तो और स्पष्ट होता है
शायद १९४२...
ओह..
वो तो रास्ता पूछ रहा था
किसी गाँव का ..
मुझे क्यों लगा क़ि वो प्यार जता रहा है
खुद को एक चपत लगाती हूँ
प्यार के सिवा कुछ सूझा है कभी
....:))
uncoscious हो रही शायद
नींद आने को तैयार है
और धड से इनका एक हाथ पड़ता है
नींद में भी कुछ पकड़ने की कवायद
उफ़
सारी बातें उड़न छू
एक मुस्कुराहट आती है
कितना terror है तुम्हारा
मेरे सपने भी भाग जाते हैं
याद आती है इक बात
जो कई बार कही है तुमने
शाहरुख़ का वही डायलोग...
इतनी शिद्दत से तुमको पाने की ख्वाहिश की है
क़ि हर ज़र्रे ने तुमसे मिलाने क़ि कोशिश की है
अब मै पूरी तरह conscious थी
और कभी दोपहर को
ना सोने की क़सम खा रही थी
Saturday, 26 May 2012
वक़्त के वो कतरे
जो यादों के जंगल में छूटे था
आज भी साये की तरह मंडराते है
मुझे तेरी याद दिलाते है ...
याद है वो नारंगी सी शाम
जब सूरज झील की सीढिया उतर रहा था
कुछ करुण सा भाव भर रहा था
वो आँखों में गीलापन औ' निशब्द से पल
आज बहुत कुछ जताते हैं
.... मुझे तेरी याद दिलाते है
आज भी सूरज मध्धम हो कर देख रहा
शायद उन्ही पलों को संजो रहा
तुम नहीं हो इस शाम यहाँ
आँखों में वही नमी बिछड़े हुये वही कुछ पल
मेरे घर का रास्ता दिखाते है
.........मुझे तेरी याद दिलाते हैं...
तेरा साथ मिलना समय को रास नहीं था
उसके फैसले से तू भी उदास नहीं था
जो थोड़े पल मैंने काट कूट के बचाए थे
वही पल अब मुझे जीना सिखाते है
.......मुझे तेरी याद दिलाते है
Monday, 21 May 2012
सारे रंग तुमसे हैं ....
तुम्हारे अहसास से अछूती होती
तो
सचमुच मै सफ़ेद होती
किसी ख़ाली केनवास की तरह
कई रंग मचलते हैं
जब तुम गुनगुनाते हो
मंद पड़ते हैं
जब एक
अनकहा अबोला खीच जाता है
कुछ तो कहो
प्रियतम
तुम्हारे इशारे पर
सूरज का लाल रंग देह में उछलता है
तुम्हारे ख्यालों
के नीले पीले हरे से मेरा एकांत
महकता हैं
तुम्हारी
एक हलकी गुलाबी मुस्कुराहट
के लिए नैन रास्ता ताकते हैं
कभी अनमने रहो
तो
अन्तरमन से भूरे काले रंग झांकते हैं
उस विराट समंदर का
काही और गहरा नीला रंग
याद दिलाते है उस गंभीरता की
जिसमे मै सिमट कर इस भीड़ में
खुद को महफूज़ समझती हूँ
सारे रंग
मुझे तुम्हारी ही याद दिलाते हैं
तुम्हे पता है ना..
मेरे सारे रंग तुमसे हैं
तुम न होते
सचमुच मै सफ़ेद होती
किसी ख़ाली केनवास की तरह
तो
सचमुच मै सफ़ेद होती
किसी ख़ाली केनवास की तरह
कई रंग मचलते हैं
जब तुम गुनगुनाते हो
मंद पड़ते हैं
जब एक
अनकहा अबोला खीच जाता है
कुछ तो कहो
प्रियतम
तुम्हारे इशारे पर
सूरज का लाल रंग देह में उछलता है
तुम्हारे ख्यालों
के नीले पीले हरे से मेरा एकांत
महकता हैं
तुम्हारी
एक हलकी गुलाबी मुस्कुराहट
के लिए नैन रास्ता ताकते हैं
कभी अनमने रहो
तो
अन्तरमन से भूरे काले रंग झांकते हैं
उस विराट समंदर का
काही और गहरा नीला रंग
याद दिलाते है उस गंभीरता की
जिसमे मै सिमट कर इस भीड़ में
खुद को महफूज़ समझती हूँ
सारे रंग
मुझे तुम्हारी ही याद दिलाते हैं
तुम्हे पता है ना..
मेरे सारे रंग तुमसे हैं
तुम न होते
सचमुच मै सफ़ेद होती
किसी ख़ाली केनवास की तरह
Sunday, 20 May 2012
बस हवा बनना है ....
मुझे भी हवा बनना है
मिटटी और पानी में चलना है
आसन सा सफ़र होगा
कभी यहाँ कभी वहां होगा
कितना अच्छा होगा
देखेगा ना कोई
क्या करती हूँ दिन भर
हंसती हूँ या रोई
जागी हूँ या सोयी
कभी सूरज से पेंच
कभी धरा से लिपट जाउंगी
सोते रहे तुम
तो गुनगुना के जगाउंगी
हौले से सहलाउंगी
हाथ बढा जो पकड़ना चाहो
रेत की तरह फिसल जाउंगी
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