Wednesday, 6 June 2012

तुम्हे ढूंढते हुए.....:))


सूरज
चाँद
सितारे
फूल
खुशबु
नज़ारे
तुम हो तो
..
.
.
ये हैं...
ये रहेंगे
क्यों कि
तुम हो ...
'ज़िन्दगी '
मै तुम्हे तलाशती हूँ
हर चेहरे में
और
खुद को जोड़ लेती हूँ
कुछ पल
विद्रूपताएं रोकती हैं
मेरी तलाशियों के रास्ते
और मै बदल देती हूँ अपने रास्ते
कोई नहीं आ सकता
तुम्हारे और मेरे बीच
देखना
एक रोज
मै तुम्हे ढूंढ़ लूँगी

4 comments:

  1. राज लक्ष्मी (रश्मि )जी की ये कविता आज के जीवन और उस के बदलते हुये अर्थ की तलाश में, सूरज ,ज़मीन और चाँद के दरमियाँ घूमती नज़र आती है . बहुत ही शानदार कविता आम आदमी को अपने होने का एहसास दिलाती हुयी .
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    ख़ुर्शीद हयात

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  2. what a talaash.. tum bahut pyara likhti ho ..

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  3. Suraj....Chaand...Sitare....foool.....kKhushboo....Nazare
    Tum hi toh ho......har samay saath Raj

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