Friday, 22 June 2012

एक पत्ता सूखा सा ....


सपने खेलते रहे नींद से
और सूखे पत्ते की तरह ज़िन्दगी उड़ती रही
वो कांटे जो तुमने घेरे थे
जानवरों के डर से
वो सूखी पत्ती
उसी में अटक गयी
फट गयी
हवाओं ने चिथड़ों में बदल दिया उसे
पर होशो हवाश में
उसने तुम्हारा दर छोड़ना
नहीं तय किया था

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