धरा भी कहीं नही जाती
दोनों साथ ही रहते हैं हमेशा
मिलते है रोज
जीवन की तरह
जीवन के आयामों के तरह
आने जाने वाली भावनाओं की तरह
आखिर कुछ भी तो स्थिर नहीं होता
ना धरा की गति ना सूरज के तेवर
सुबह उनके मिलन की
खुशियों की घडी होती है
रात धरा सारी आंच
अपनी पीठ पर झेलती है
और ये सिर्फ हमारी खुशियों के लिए
ये सचमुच ..
उनके लिए मायने रखती है
चार पहर सीडियां रोज़ धरा घर चढ़ सूरज आता है .
ReplyDeleteनिशब्ध बस होले से आ निस्वार्थ प्रेम निभाता है ...
पहर दर पहर धरा भी उतावली बन करती सूरज का इंतज़ार ...
डूबती उतरती संग संग वोह भी निभाती अपना अटूट प्यार ........
Good Morning ............... :)