Tuesday, 5 June 2012

बिना शीर्षक .....


किसी के बेपरवाह अंदाज़ जब परेशान करते हैं ...
और ..खुद पर नाराजगी हो तो जाने कैसे कैसे शब्द निकल आते हैं..

ये ख्वाहिश है या श्राप ,नहीं पता
बस इतना बताना चाहती हूँ
मै जितना याद करती हूँ तुझे
उतनी ही याद आना चाहती हूँ

4 comments:

  1. सही ख्‍वाहि‍श है......याद करना और याद आना, दोनों जरूरी है..

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  2. मै तुम्हे याद नहीं करता...
    फिर तुम क्यूँ याद आती हो... :)

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  3. give and take , chaho ya na chaho..yaad to aaogey hi

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  4. शुक्रिया ...आभार ..रश्मि ,मुकेशजी और प्यारी 'ना '

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