मुझसे नहीं गटकी जाती
ये काली काफी
जैसी शाम
पर अकेले रह कर
यही पीती हूँ
डर लगता है
खूब सारी क्रीम के साथ
गटकते हुए
यदि मूंछे बन गयी तो ???
कौन बताएगा ?
कौन पोंछ जायेगा
अपनी लम्बी सी तर्जनी से
सबकी नज़रे बचाते हुए
और
चुपके से
स्पर्श की एक लकीर
मेरे शर्माए से चेहरे पर छोड़ते हुए
No comments:
Post a Comment