Sunday 8 July 2012

यादें थी ...




मेरे गले में पड़ी
वो तीर्थ यात्रा से खरीदी
सस्ती
बारीक मोतियों की गुथन
जो एक रोज टूट गयी
तुम्हारे उँगलियों की छुवन से
बिखर गए थे मोती
मै रो पड़ी थी
तुम समझ नहीं पाए
मै कह नहीं पाई
वो सिर्फ 'माला ' नहीं थी
मैंने 'वायदे ' पहने थे
भूल जाने के
माला तो टूट गयी
पर वो मोतियाँ
फर्श पर नहीं बिखरी
मेरी देह ने सारी मोतियाँ सोख ली
और वो वायदा भी
जो बिछड़ते समय
नम आँखों से किया था
तुम्हे कभी कभी याद नहीं करूंगी

No comments:

Post a Comment