Wednesday, 11 July 2012

बिंधा मन ...

तुमसे बिछड़ कर जाना
महज याद करना
और समय गुजारना ही जीवन नहीं
तुमसे ही सीखा
खुद से लगाये गए
बेल को ख़त्म करने के लिए
जरुरत नहीं पड़ती औजारों की
सिर्फ एक छोटा तेज चाकू
काट सकता है उस पतले से तने को
रोक सकता है
पानी का परिवहन
और हलाल हो जाता है एक रिश्ता
तुम तो यूँ चले गए
जैसे कभी कोई वास्ता नहीं था
शायद नहीं था
तब ही तुम जा सके
ये मेरा मन भी समझने लगा है

4 comments:

  1. शायद नहीं था
    तब ही तुम जा सके ...

    beautifully expressed!

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  2. khunti per tangte hue usne Libaas ko halke se chuaa....jaroor tha...
    aaj bhi uss Libaas mein ik mehak basi hea....
    jo kisi bhi auzaar se Kat ti nhi hea......
    Bindha Mann.........

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