Saturday 18 May 2013

इस प्यार को क्या नाम दूँ ...??

   






हम दर्ज करेंगे,
अलग अलग  
अपनी अपनी 
डायरियों में 
साथ गुजारे लम्हों का हिसाब 
और सारी उम्र 
अपने बच्चों से करेंगे चर्चा
एक कच्ची अमिया जैसे लगाव  का 
जब बिना मिले ही 
एक दुसरे के लिए जिया था जीवन 
बिना किसी इच्छा 
आकांक्षाओं  के 
और फिर  आधी सदी गुजार  दी 
एक दुसरे को देखे बिना ही 
फिर एक दिन 
जब मै  और तुम मर जायेंगे
हजारों किलोमीटर के फासले पर 
हमारे बच्चे 
हमारी छोड़ी निशानियों से 
ढूंढ लेंगे एक दुसरे को 
हमारा  प्यार हम रोप जायेंगे 
उनके ह्रदय में

मेरी डायरी में दर्ज होगी 
एक अंतिम इच्छा 
तुम्हारे घर के सामने 
तुम्हारे हाथों से लगाया 
गुलमोहर का एक बीज 
मेरे घर के सामने वाले 
गुलमोहर के बाजु में लगाना 
और .....
मेरे आँगन के पेड़ का बीज 
तुम्हारे आँगन में 
हम सारी 'मई 'एक साथ मुस्कुराएंगे 
वो याद करेंगे 
आश्चर्य प्रकट करेंगे 
उन्हें तो पता भी न चला 
'माँ उनके साथ साथ 
किसी और से भी जुडी रही 
इस हद तक 
और सीखेंगे 
किसी को प्यार करते 
उसके लिए जीते 
दायित्वों से मुंह नहीं मोड़ा जाता 
ठंडी आहें भरना ही 
प्यार के घनत्व को नहीं दर्शाता 

Wednesday 8 May 2013

सब कुछ बह जाता है ...



कुछ भी नही बदलता
किसी की 
मौजूदगी 
या गैर मौजूदगी से 
धरा के दो बिन्दुओं में से 
किसी भी जगह खड़े होने पर
अगली  तरफ 
मै  देख सकती थी 
.........
वैसे ही पतझड़ के पत्ते 
वैसा ही बसंत 
वैसे ही बारिश 
वैसा ही हर रंग 
तुम्हारे इर्द गिर्द फ़ैली 
वैसे ही रौशनी 
और फासला 
वैसा ही अनन्त 

अब मुझे सब देखने के बाद 
किसी पर गुस्सा नहीं आता 
तुम पर भी नहीं 
अपनी निरर्थकता पर भी नही 
सुबह से शाम तक 
ढोर डंगर की तरह काम करते 
या शाम को छत पर खड़े हो 
डूबते सूरज को घूरते 
दिमाग की प्रश्नावली को बिना हल ढूंढे 
एक शून्य में जीना आ गया है
या कहूँ ...'ज़िन्दगी'
तुम्हारे मित्र समय ने सिखा दिया है