Monday, 16 July 2012

चुप्पी का तिर्सठ्वा अर्थ ..



मै समेट कर रख लूँगी
तुम्हारी चुप्पियाँ 
और यादों से कहूंगी 
बहना बंद करो 
पत्थरों  से पानी नहीं निकलता 
तुम्हारी कोहनियाँ छिल जाएँगी 
लहूलुहान हो जाएँगी 
आंसुओं के सूखने के बाद 
नमक नहीं बहता 
बस जम जाता है 
मन के किसी कोने में 
यादों की ईंट चिन कर 
एक नमक का  बांध बनाना है 
ये दर्द फ़िर नहीं गुनगुनाना है
बिना किसी शिकायत के जीना है
और 
जाते समय  
सारा कुछ साथ लेकर जाना है 

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