Monday 16 July 2012

चुप्पी का तिर्सठ्वा अर्थ ..



मै समेट कर रख लूँगी
तुम्हारी चुप्पियाँ 
और यादों से कहूंगी 
बहना बंद करो 
पत्थरों  से पानी नहीं निकलता 
तुम्हारी कोहनियाँ छिल जाएँगी 
लहूलुहान हो जाएँगी 
आंसुओं के सूखने के बाद 
नमक नहीं बहता 
बस जम जाता है 
मन के किसी कोने में 
यादों की ईंट चिन कर 
एक नमक का  बांध बनाना है 
ये दर्द फ़िर नहीं गुनगुनाना है
बिना किसी शिकायत के जीना है
और 
जाते समय  
सारा कुछ साथ लेकर जाना है 

Wednesday 11 July 2012

बिंधा मन ...

तुमसे बिछड़ कर जाना
महज याद करना
और समय गुजारना ही जीवन नहीं
तुमसे ही सीखा
खुद से लगाये गए
बेल को ख़त्म करने के लिए
जरुरत नहीं पड़ती औजारों की
सिर्फ एक छोटा तेज चाकू
काट सकता है उस पतले से तने को
रोक सकता है
पानी का परिवहन
और हलाल हो जाता है एक रिश्ता
तुम तो यूँ चले गए
जैसे कभी कोई वास्ता नहीं था
शायद नहीं था
तब ही तुम जा सके
ये मेरा मन भी समझने लगा है

Sunday 8 July 2012

यादें थी ...




मेरे गले में पड़ी
वो तीर्थ यात्रा से खरीदी
सस्ती
बारीक मोतियों की गुथन
जो एक रोज टूट गयी
तुम्हारे उँगलियों की छुवन से
बिखर गए थे मोती
मै रो पड़ी थी
तुम समझ नहीं पाए
मै कह नहीं पाई
वो सिर्फ 'माला ' नहीं थी
मैंने 'वायदे ' पहने थे
भूल जाने के
माला तो टूट गयी
पर वो मोतियाँ
फर्श पर नहीं बिखरी
मेरी देह ने सारी मोतियाँ सोख ली
और वो वायदा भी
जो बिछड़ते समय
नम आँखों से किया था
तुम्हे कभी कभी याद नहीं करूंगी