Monday 18 June 2012

......आखिर कब तक..

....
पूजा करते हुए ..

आँखे बंद है मन शांत भी

शायद आराध्य का ध्यान भी

कोई कंकड़ सा उछलता है ठहरे पानी में

और दो बूंद नमी की ढलकती है आँखों से

बहुत हुआ

अब नहीं सहा जाता

दर्द का अफसाना नहीं कहा जाता
तुम्हे मुक्त किये तो अरसा बीता

मन के पिंजरे में कब तक रहोगे
और
कब तक आंसू बन के बहोगे ?

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