पूजा करते हुए ..
आँखे बंद है मन शांत भी
शायद आराध्य का ध्यान भी
कोई कंकड़ सा उछलता है ठहरे पानी में
और दो बूंद नमी की ढलकती है आँखों से
बहुत हुआ
अब नहीं सहा जाता
दर्द का अफसाना नहीं कहा जाता
तुम्हे मुक्त किये तो अरसा बीता
मन के पिंजरे में कब तक रहोगे
और
कब तक आंसू बन के बहोगे ?
bahut samvedansheeltaa hai ..
ReplyDeleteशुक्रिया ...वंदनाजी
ReplyDeletesimple yet powerful
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