Friday 1 June 2012


कई बार रोने पीटने वाली कवितायेँ पढ़ कर एक दबी सी आह निकल आती है ...बाबू जो इत्ती शिद्दत होती ना...और अल्लाह मियां मेहरबान होते तो तुम वो chance भी miss नहीं करते ..खैर ज़िन्दगी दोबारा ..उहूँ... कई बार मौके देती है जरुरत है पकड़ने की...

क्या शकल बना रखी है
'ज़िन्दगी '
उठ
जाग
और समझ
स्यापे से 'गये' हुए
नहीं लौटते
[स्यापा ...शोक करना ']

4 comments:

  1. excellent thought.....and beautifully composed....

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  2. हँस...और हँसा...
    'पिज्जा' खा...
    डरावनी सूरत बना...गुर्रा...
    फिर....मुस्कुरा...
    मीत बना...
    गीत गा...
    अस्तित्व में डूब जा...!!

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  3. Extremely Cute !! God bless you for spreading so much happiness around :)

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