Thursday, 8 November 2012

कुछ याद आता है .....

प्यार 'था '

नहीं' है '

अब भी  है वही अहसास 

जब तुमने कहा था 

कहाँ दूर जा रहा हूँ 

एक  ही ब्रम्हांड में हैं 

'पग्गल' 

वही  सूरज देखेंगे 

वही चाँद 


और बांध लेंगे 

भावनाओं पर बाँध 

मै चाहती थी तुम कहो 

मै तुम्हे याद करूँगा 

तुमने कहा 

'कहाँ भूलूंगा '

जब कोई बच्चा बारिश के छीटें  उडाएगा 

माली की नज़र बचा कर 

एक  गुलाब तोड़ लायेगा 

दरवाजे पर खड़े रोटी मांगते बच्चे को 

पूरा पर्स पकडाये गा 

मुझे तुम दिखोगी 

भूतनी 

और बस युद्ध शुरू हो जाता 

एक दुसरे के पीछे 

भागते 

कभी कभी लगता है 

शायद कई जन्मों से दौड़ रही 

तुम्हारे पीछे 

तुम उस समय भी ताक़तवर थे 

आज भी हो 

और मैं भाग भी रही कुछ कम गति से 

की तुम्हे कभी न पकड़ सकूँ 

मुझे ऐसा ही रहना है 

तुम्हारा ध्यान भागने में हो 

मेरा ध्यान पकड़ने में 

और हम दोनों 'ध्यानी ' के बीच  कोई न हो 

4 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,शुरू से आखिर तक एक एक शब्द सुंदर भावों के साथ लिखे गए है।

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  2. शुक्रिया ....नादिर खान जी

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  3. Ek hi Bramnd mein Hein ...Tum mere Mon ke saath ek dhun chedti ho aur sufiana kalaam ched Ker mujhe saadh leti ho .....meri awaaz ab ghuti nhi hea...Sazde mei tumhare saath hi bethi hoon.......
    .................bahut khoob Raj

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  4. बहुत सुंदर अभि‍व्‍यक्‍ति

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