Monday 19 November 2012



मै  जी रहीं हूँ 
एक अलग सी औरत 
जो मेरे अन्दर ही बसर करती है 
जीती है 
एक अनाम सा
निशर्त  रिश्ता 
जो तय करता है 
बिना मुझसे पूछे 
किस से कब मिलना है 
किस से कब बातें करनी है 
और कब उठ कर 
चले जाना है 
अब तक जिए सारे  रिश्तों से
सारे ओहदों से  
अलग है 
कुछ रंग जुदा हैं 
कुछ स्वाद अजीब है 
पर है अनोखा 
आसान  बनाता 
जीवन 
'ईश्वर '
अब कोई शिकायत नहीं  
मै  तेरी' रज़ा '
में 'राजी' हूँ 
सच मानो
पहले  
जब  पकडती थी 
ज़िन्दगी की कड़ियाँ 
और कस  के रिश्ते 
वो  हाथ से छूटे जाते थे 
अब जब छोड़ दिया 
मुठ्ठी बांधना 
आ आ के 
मेरे साहिल से 
ख़ुशी बन लिपटते हैं 

No comments:

Post a Comment