मै जी रहीं हूँ
एक अलग सी औरत
जो मेरे अन्दर ही बसर करती है
जीती है
एक अनाम सा
निशर्त रिश्ता
जो तय करता है
बिना मुझसे पूछे
किस से कब मिलना है
किस से कब बातें करनी है
और कब उठ कर
चले जाना है
अब तक जिए सारे रिश्तों से
सारे ओहदों से
अलग है
कुछ रंग जुदा हैं
कुछ स्वाद अजीब है
पर है अनोखा
आसान बनाता
जीवन
'ईश्वर '
अब कोई शिकायत नहीं
मै तेरी' रज़ा '
में 'राजी' हूँ
सच मानो
पहले
जब पकडती थी
ज़िन्दगी की कड़ियाँ
और कस के रिश्ते
वो हाथ से छूटे जाते थे
अब जब छोड़ दिया
मुठ्ठी बांधना
आ आ के
मेरे साहिल से
ख़ुशी बन लिपटते हैं
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