जब कभी दोपहर देर से जागना हुआ तो रात बड़ी मुश्किल हो जाती है बाहर जा नहीं सकते in laws को लगता है झगडा हुआ है..बच्चे भी ऐसा ही कुछ सोचते है उनके कमरे आ कर disturb करो तो...बस मन मार कर पड़े पड़े 'विचरण ' करते रहो..conscious world से sub ...कभी semi conscious तक ....कई बार मैंने खुद के शरीर को दूर से देखा बिलकुल सुन्न सा..
कल भी कुछ ऐसा घटा
ये शायद sub conscious stage थी ....
मेरी रूह को
जिस्म का पैरहन उतार कर जाते देखा
मिलने
उस जिस्म तक
जिसका अता पता बरसों पहले याद था
याद क्या
शायद सोचा होगा ...:))
semi conscious....
उफ़..
अचानक 'वैभव ' याद आया
वही जो एक नम्बर वाले क्वार्टर में तब रहने आया
जब मै 9th में थी
और उसे अपना पहला boy friend मानती थी
अरे कुछ और नहीं
वो यूँ की
वो लड़की तो था नहीं
जो सहेली बनता
इसलिए दोस्त
और फ़िर चिढाने के लिए boy भी जोड़ दिया
हाँ एक बात और
बाद में हर जगह नज़र आने के कारण
उसका नाम 'भूत' पड़ गया
दिन , रात . सुबह शाम
स्कूल के पास
सहेली के घर के पास
या कोचिंग के पास
ये अलग बात है
मै भी तब तक
girl friend से चुड़ैल बन गयी
उसने शहर से जाते जाते बताया था
उसके सपने में आने वाली
चुड़ैल का चेहरा मुझसे मिलता है
अचानक घडी पर नज़र जाती है
और रात के २ बज रहे देख कर
जी घबरा ही जाता है
'माँ 'याद आती है.
रात १२ से २ तक निशाचर घूमते हैं
और एक प्रार्थना में हाथ जुड़ते हैं
हे भगवान् ...वैभव को ठीक रखना
आज इस बात को
शायद दो दशक से ज्यादा बीता
लगा भी नहीं था
क़ि ज़िन्दगी की किसी रात के
ऐसे पल में वो याद आएगा
खैर....
चित्र बदल रहे
खुद को पीले सूट में देखती हूँ
शायद कोई कबीला जैसा कुछ
पैरों में राजस्थानी मोजडी
ये शायद पंजाब राजस्थान के बीच का कोई गाँव है
ऐसा कुछ संकेत है
मै कुछ मेमने लिए बैठी हूँ
एक रास्ते पर
शायद इंतज़ार है किसी का
और वो दिखता है
हाथ में क्रांति आज़ादी क़ि तख्तिया लिए
एक गोरा सा लड़का
कंजी आँखों वाला
दिमाग में जोर डालती हूँ
तो और स्पष्ट होता है
शायद १९४२...
ओह..
वो तो रास्ता पूछ रहा था
किसी गाँव का ..
मुझे क्यों लगा क़ि वो प्यार जता रहा है
खुद को एक चपत लगाती हूँ
प्यार के सिवा कुछ सूझा है कभी
....:))
uncoscious हो रही शायद
नींद आने को तैयार है
और धड से इनका एक हाथ पड़ता है
नींद में भी कुछ पकड़ने की कवायद
उफ़
सारी बातें उड़न छू
एक मुस्कुराहट आती है
कितना terror है तुम्हारा
मेरे सपने भी भाग जाते हैं
याद आती है इक बात
जो कई बार कही है तुमने
शाहरुख़ का वही डायलोग...
इतनी शिद्दत से तुमको पाने की ख्वाहिश की है
क़ि हर ज़र्रे ने तुमसे मिलाने क़ि कोशिश की है
अब मै पूरी तरह conscious थी
और कभी दोपहर को
ना सोने की क़सम खा रही थी
इतनी प्यारी कविता.... पढ़ कर चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी. लिखती रहिये ऐसी ही खूबसूरती के साथ ...हम मुस्कुराते रहेंगे.Loved it :)
ReplyDeletethanks Meeta....
ReplyDeleteओए होए, ग़ज़ब!
ReplyDeleteआपको पसंद आयी...शुक्रिया...:))
ReplyDeletesahi......
ReplyDeleterashmi aaj fir tumney mujhey ek choti si larki bana diya..fir bahut saarey yaad aur ehsaas jaga diye..kya likhti ho..but aisi raat ho to neend bhi na aaye fir
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