Wednesday, 27 June 2012

Black Coffee...:(

तुम्हारे बगैर
मुझसे नहीं गटकी जाती
ये काली काफी
जैसी शाम
पर अकेले रह कर
यही पीती हूँ
डर लगता है
खूब सारी क्रीम के साथ
गटकते हुए
यदि मूंछे बन गयी तो ???
कौन बताएगा ?
कौन पोंछ जायेगा
अपनी लम्बी सी तर्जनी से
सबकी नज़रे बचाते हुए
और
चुपके से
स्पर्श की एक लकीर
मेरे शर्माए से चेहरे पर छोड़ते हुए

Sunday, 24 June 2012

Turning point...


एक अजीब सा मोड़ था
जब उसने कहा 'प्रेम '
और
एक तन
सिकुड़ कर खोह में धंस गया
कुछ दिनों बाद
सर फ़िर निकला
फिर सुनी वही आवाज़
मैंने 'देह' कब कहा
मैंने सिर्फ 'प्रेम ' कहा
अब वो 'तन आश्वस्त सा
बाहर आया
एक नया मोड़ था
जहाँ से क़दम कभी नही गुजरे थे
हरी भरी सी वादियाँ
साथ साथ रखते क़दम
तय करते रहे जन्नत का फासिला
प्रेम कहने वाला
मन से कब तन तक पहुंचा
और रग रग में उतर गया
और फ़िर
................
...............
कब जी भी भर गया प्रेम का
पता ही नहीं चला
एक दिन आखिरी मोड़ आया
प्रेम का
उसने कहा
मुझे जाना है
शायद किसी मोड़ तक ही वायदे थे उसके
और तमाम प्रेम कहानियों में 'जाना '
सिर्फ एक ही तय करता रहा है
बस जाने दिया
अब रास्ते हैं
सन्नाटें हैं
और ढेर सारी रेत
आँखों में गड़ती
जी दुखाती
और खोल में सिमटा
एक आहत मन

Saturday, 23 June 2012

दिन और रात..मेरी नज़र ..:))

सूरज कहीं नही जाता
धरा भी कहीं नही जाती
दोनों साथ ही रहते हैं हमेशा
मिलते है रोज
जीवन की तरह
जीवन के आयामों के तरह
आने जाने वाली भावनाओं की तरह
आखिर कुछ भी तो स्थिर नहीं होता
ना धरा की गति ना सूरज के तेवर
सुबह उनके मिलन की
खुशियों की घडी होती है
रात धरा सारी आंच
अपनी पीठ पर झेलती है
और ये सिर्फ हमारी खुशियों के लिए
ये सचमुच ..
उनके लिए मायने रखती है

Friday, 22 June 2012

एक पत्ता सूखा सा ....


सपने खेलते रहे नींद से
और सूखे पत्ते की तरह ज़िन्दगी उड़ती रही
वो कांटे जो तुमने घेरे थे
जानवरों के डर से
वो सूखी पत्ती
उसी में अटक गयी
फट गयी
हवाओं ने चिथड़ों में बदल दिया उसे
पर होशो हवाश में
उसने तुम्हारा दर छोड़ना
नहीं तय किया था

Wednesday, 20 June 2012

'ईश्वर '..

एक

तुम्हे जानने के बाद

शब्द फिसलते रहे

गढ़ते रहे आकृतियाँ

जैसे कोई मूरत गढ़ता है

और जो बन के सामने आया

उसका चेहरा

तुमसे बहुत मिलता है

'ईश्वर '...:))

ये तुम्हारा आशीष है

या मेरी प्रार्थनाओं का फ़ल

जो भी है बहुत खूबसूरत है

Monday, 18 June 2012

......आखिर कब तक..

....
पूजा करते हुए ..

आँखे बंद है मन शांत भी

शायद आराध्य का ध्यान भी

कोई कंकड़ सा उछलता है ठहरे पानी में

और दो बूंद नमी की ढलकती है आँखों से

बहुत हुआ

अब नहीं सहा जाता

दर्द का अफसाना नहीं कहा जाता
तुम्हे मुक्त किये तो अरसा बीता

मन के पिंजरे में कब तक रहोगे
और
कब तक आंसू बन के बहोगे ?

Thursday, 14 June 2012

सापेक्षता का सिद्धांत ..

ये बात कल उस कछुए ने बताई
जिसका जीवन
कम से कम चार दशकों का था
कि
गिलहरियाँ अच्छी प्रेमिका नहीं बन सकती
उनकी सोच एक पेड़ और
उसके इर्द गिर्द ही होती है
उन्हें अपने परिवेश से प्रेम सिखाया गया है
उन्हें प्रेम में सापेक्ष या निरपेक्ष होना नहीं सिखाया गया
उन्हें सिखाया गया है
इस सीमा से दूर नहीं जाना
उन्हें ये भी सिखाया गया की
अच्छे बीजों की तलाश में
दूर जाना खतरनाक हो सकता है

Tuesday, 12 June 2012

तह किया वजूद.....


अपने वजूद के कुछ टुकड़े
मुझे भी दिखाई देते है
दरवाज़े में टंगे name plate में
उन फूल पत्तियों के बीच
खूबसूरती से उकेरे नाम में
देर से आने पर
तुम्हारी मीठी सी उलाहना में
आखिर बच्चो के
व्यव्हार,
प्रदर्शन
में भी तो शामिल है मेरा वजूद
घर के अन्दर
बिखरे हर चीज़ में ढूंढ़ लेती हूँ
अपना वजूद
और तह कर के रख देती हूँ
ताकि समय पर
तुम दिखा सको मुझको मेरा वजूद

Saturday, 9 June 2012

इश्किया ....


कई दिन तेरे सपनो को
ख्यालों की हांड़ी में उबाला
वास्तविकताओं से छौंका
पक कर तैयार होता
तुमने खींच दी
एक फासले की खंदक
और भर दिया पानी से
ताकि ना पहुंचे
तेरे ख्वाबों तक
मेरे ख्याल भी
हाँ तू गुनाहगार है
मेरा
और उस रब का भी
जिसे मैं इश्क कहती हूँ
और उसने ही तुझे बख्शा है
उम्र भर का बंजारापन
भटकता रहेगा ...
पता नही कितने जन्मों तक
मैंने तेरे लिए ये सजा नहीं चाही
ये रब का फैसला है
और तेरे साथ साथ
भटकेगी मेरी भी रूह
सब कुछ होते हुए

Wednesday, 6 June 2012

तुम्हे ढूंढते हुए.....:))


सूरज
चाँद
सितारे
फूल
खुशबु
नज़ारे
तुम हो तो
..
.
.
ये हैं...
ये रहेंगे
क्यों कि
तुम हो ...
'ज़िन्दगी '
मै तुम्हे तलाशती हूँ
हर चेहरे में
और
खुद को जोड़ लेती हूँ
कुछ पल
विद्रूपताएं रोकती हैं
मेरी तलाशियों के रास्ते
और मै बदल देती हूँ अपने रास्ते
कोई नहीं आ सकता
तुम्हारे और मेरे बीच
देखना
एक रोज
मै तुम्हे ढूंढ़ लूँगी

Tuesday, 5 June 2012

बिना शीर्षक .....


किसी के बेपरवाह अंदाज़ जब परेशान करते हैं ...
और ..खुद पर नाराजगी हो तो जाने कैसे कैसे शब्द निकल आते हैं..

ये ख्वाहिश है या श्राप ,नहीं पता
बस इतना बताना चाहती हूँ
मै जितना याद करती हूँ तुझे
उतनी ही याद आना चाहती हूँ

Friday, 1 June 2012


कई बार रोने पीटने वाली कवितायेँ पढ़ कर एक दबी सी आह निकल आती है ...बाबू जो इत्ती शिद्दत होती ना...और अल्लाह मियां मेहरबान होते तो तुम वो chance भी miss नहीं करते ..खैर ज़िन्दगी दोबारा ..उहूँ... कई बार मौके देती है जरुरत है पकड़ने की...

क्या शकल बना रखी है
'ज़िन्दगी '
उठ
जाग
और समझ
स्यापे से 'गये' हुए
नहीं लौटते
[स्यापा ...शोक करना ']