Thursday, 31 May 2012

मैं ख़ुशी हूँ ...

मुझे नहीं आता घुमा  फिरा कर कहना
ये जानती हूँ
जीने के लिए
आसपास
खुशियों का होना जरुरी है
और मेरी सारी कवायद
खुशियों के लिए है
आपकी और मेरी खुशियाँ
आप दूर रह कर सोचते होंगे
आप मुझे तंग कर रहे
अब ये सोचियेगा
इतनी देर खुशियाँ भी तो
नहीं मिली आपको
क्यूँ...
मेरा नहीं अपना सोचिये 
खुद को खुश रखना आ जायेगा जिस दिन 
आप मेरा  ख्याल भी रखना शुरू कर देंगे   ...:))

Wednesday, 30 May 2012

एक लम्बी कविता ....unedited

जब कभी दोपहर देर से जागना हुआ तो रात बड़ी मुश्किल  हो जाती है बाहर जा नहीं सकते in laws को लगता है झगडा हुआ है..बच्चे भी ऐसा ही कुछ सोचते है उनके कमरे आ कर disturb करो तो...बस मन  मार कर पड़े पड़े 'विचरण ' करते रहो..conscious world से sub ...कभी semi conscious तक ....कई बार मैंने खुद के शरीर को दूर से देखा बिलकुल सुन्न सा..
कल भी कुछ ऐसा घटा 
 
ये शायद sub conscious stage थी ....
 
मेरी रूह को 
जिस्म का पैरहन उतार कर जाते देखा 
मिलने 
उस जिस्म तक 
जिसका अता पता बरसों पहले याद था 
याद क्या
शायद सोचा होगा ...:))
 
 
semi conscious....
उफ़..
अचानक 'वैभव ' याद आया
वही जो एक नम्बर वाले क्वार्टर में तब रहने आया
जब मै 9th में  थी
और उसे अपना पहला boy friend मानती थी
अरे कुछ और नहीं
वो यूँ की
वो लड़की तो था नहीं
जो सहेली बनता
इसलिए दोस्त
और फ़िर चिढाने के लिए boy भी जोड़ दिया
हाँ एक बात और
बाद में हर जगह नज़र आने के कारण
उसका नाम 'भूत' पड़ गया
दिन  , रात .  सुबह शाम
स्कूल के पास
सहेली के घर के पास
या कोचिंग के पास
ये अलग बात है
मै भी तब तक
girl friend से चुड़ैल बन गयी
उसने शहर से जाते जाते बताया था
उसके सपने में आने वाली
चुड़ैल का चेहरा मुझसे  मिलता है
अचानक घडी पर नज़र जाती है
और रात के २ बज रहे देख कर
जी घबरा ही जाता है
'माँ 'याद आती है.
रात १२ से २ तक निशाचर घूमते हैं
और एक प्रार्थना में हाथ जुड़ते हैं 
हे भगवान् ...वैभव को ठीक रखना 
आज इस बात को
शायद दो दशक से ज्यादा बीता 
लगा भी नहीं था 
क़ि ज़िन्दगी की किसी  रात के
ऐसे पल में वो याद आएगा
खैर....
 
चित्र बदल रहे
खुद को पीले सूट में देखती हूँ
शायद कोई कबीला जैसा कुछ
पैरों में राजस्थानी मोजडी
ये शायद पंजाब  राजस्थान के बीच का कोई गाँव है
ऐसा कुछ संकेत है
मै कुछ मेमने  लिए बैठी हूँ
एक रास्ते पर
शायद इंतज़ार है किसी का
और वो दिखता है
हाथ में क्रांति आज़ादी क़ि तख्तिया लिए
एक गोरा सा लड़का
कंजी आँखों वाला
दिमाग में जोर डालती हूँ
तो और स्पष्ट होता है
शायद १९४२...
ओह..
वो तो रास्ता पूछ रहा था
किसी गाँव का ..
मुझे क्यों लगा क़ि वो प्यार जता रहा है 
खुद को एक चपत लगाती हूँ
प्यार के सिवा कुछ सूझा है कभी
....:))
 
uncoscious हो  रही  शायद 
नींद आने को तैयार है 
और धड से  इनका एक हाथ पड़ता है 
नींद में भी कुछ पकड़ने की कवायद 
उफ़
सारी बातें उड़न छू 
एक मुस्कुराहट आती है 
कितना terror है तुम्हारा 
मेरे सपने भी भाग जाते हैं
याद आती है इक बात 
जो कई बार कही है तुमने 
शाहरुख़ का वही डायलोग...
इतनी शिद्दत से तुमको पाने की ख्वाहिश की है 
क़ि हर ज़र्रे ने तुमसे मिलाने क़ि कोशिश की है
अब मै पूरी  तरह conscious थी 
और कभी दोपहर को
ना सोने की क़सम खा रही थी 
 
 
  
 
 
 
 

Saturday, 26 May 2012

ऐ ज़िन्दगी !!
ज्यादा चक्करघिन्नी ना खिला
गर मर गयी ना  गोल गोल घूमते
किसके साथ खेलोगी तुम .....ह्म्म्म...:))



वक़्त के  वो कतरे
जो यादों के जंगल में छूटे  था
आज भी साये की तरह मंडराते  है
मुझे तेरी याद दिलाते  है ...

याद है वो नारंगी सी शाम
जब सूरज झील की सीढिया उतर रहा था
कुछ  करुण सा भाव भर रहा था
वो आँखों में गीलापन औ' निशब्द से  पल
आज  बहुत कुछ जताते हैं
                  ....  मुझे तेरी याद दिलाते है

आज भी सूरज मध्धम हो कर देख रहा
शायद उन्ही पलों को संजो रहा
तुम नहीं हो इस शाम यहाँ
आँखों में वही नमी बिछड़े हुये वही कुछ पल
 मेरे घर का रास्ता दिखाते है
      .........मुझे तेरी याद दिलाते हैं...

तेरा साथ मिलना समय को रास नहीं था
उसके फैसले से तू भी उदास नहीं था
जो थोड़े  पल मैंने काट कूट के बचाए थे
वही पल अब मुझे जीना सिखाते है
         .......मुझे तेरी याद दिलाते है

Friday, 25 May 2012

हाँ..
 कुछ तीता तो था
तेरा इश्क
जब याद आता है ना
तू और तेरा प्यार
मिर्च वाले समोसों  के ऊपर
चाय पी जाती है
और आँखों में आये पानियों को
लेस लगे रुमालों से साफ़ कर
एक मुस्कुराहट चिपकाई  जाती है
इन शब्दों के साथ
"आज मिर्च कुछ ज्यादा थी ना "
और  मन को  समझाई जातीं है
उसकी सीमायें ...

Monday, 21 May 2012

तेरा होना ...

मंदिर,मस्जिद ,गिरजे सी पवित्र है
तेरी 'बोलियाँ '
तू नहीं जानता
मेरे लिए
आखिर क्या है
तेरे होने का मतलब

उम्मीद का सूरज

चमन उम्मीदों का काँटों के बीच उग आता  है
और  एक गिरता हुआ मन सम्हल जाता है
ठोकरें खा कर ही आता है  जीने का हुनर
मेरा अनुभव भी तो  यही समझा जाता है
सच मानो रोज सीखती हूँ एक नया पाठ
कोई  सोयी   उम्मीदों को जगा जाता है
कल उगेगा फिर से उम्मीद का सूरज
एक ढलता हुआ दिन समझा जाता है

सारे रंग तुमसे हैं ....

तुम्हारे अहसास से अछूती होती
 तो
सचमुच मै सफ़ेद होती
किसी ख़ाली केनवास की तरह
कई रंग मचलते हैं
जब तुम गुनगुनाते हो
मंद पड़ते हैं
जब एक
अनकहा अबोला खीच जाता है
कुछ तो कहो
प्रियतम
तुम्हारे इशारे पर
 सूरज का लाल रंग देह में उछलता है
तुम्हारे ख्यालों
के नीले पीले हरे से मेरा एकांत
महकता हैं

तुम्हारी
एक हलकी गुलाबी मुस्कुराहट
के लिए नैन रास्ता ताकते हैं
कभी अनमने रहो
तो
अन्तरमन से भूरे काले रंग झांकते हैं
उस विराट समंदर का
काही और गहरा नीला रंग
 याद दिलाते है उस गंभीरता की
जिसमे मै सिमट कर इस भीड़ में
खुद को महफूज़ समझती हूँ
सारे रंग
मुझे तुम्हारी ही याद दिलाते हैं
तुम्हे पता है ना..
मेरे सारे रंग तुमसे हैं
तुम न होते
सचमुच मै सफ़ेद होती
किसी ख़ाली केनवास की तरह

Sunday, 20 May 2012

बस हवा बनना है ....


मुझे भी हवा बनना है
मिटटी और पानी में चलना है
आसन सा सफ़र होगा
कभी यहाँ कभी वहां  होगा
कितना अच्छा होगा
देखेगा ना  कोई
क्या करती हूँ दिन भर
हंसती हूँ या रोई
जागी हूँ या सोयी
कभी सूरज से पेंच
कभी धरा से लिपट जाउंगी
सोते रहे तुम
तो गुनगुना के जगाउंगी
हौले से सहलाउंगी
हाथ बढा जो पकड़ना चाहो
रेत की तरह फिसल जाउंगी