आज़ादी ……………
मैं खुद को तुम्हे और उस अहसास को आज़ाद करती हूँ
जो पनपा था तुम्हारी मेरी नज़र मिलते ही
मैं खुद को तुम्हे और उस अहसास को आज़ाद करती हूँ
जो महसूसा था तुम्हारे पहले स्पर्श में
मैं खुद को तुम्हे और उस अहसास को आज़ाद करती हूँ
जब पहली बार तुमने blame किया था
मैं खुद को तुम्हे और उस अहसास को आज़ाद करती हूँ
जो मुझमे बेइंतेहा टूटन भर गया
मैं खुद को तुम्हे और उस अहसास को आज़ाद करती हूँ
जो मेरी आँखों मे दुःख बन कर और तुम्हारी आँखों में रुखाई बन कर था हमारी आखिरी मुलाक़ात में
मैं खुद को तुम्हे और उस अहसास को आज़ाद करती हूँ ...कि अब तुम नही हो
मैं खुद को तुम्हे और उस हर अहसास को आज़ाद करती हूँ
जो तुमसे जुड़े थे
क्या मैं सचमुच कर पाऊँगी
जो मैं कहती रहीं हूँ खुद से ..
मैं खुद को तुम्हे और उस अहसास को आज़ाद करती हूँ
ReplyDeleteशानदार..
apnajahan.blogspot.in
सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
http://iwillrocknow.blogspot.in/