Monday, 23 March 2015

छू लो आसमान …… 


कोहरे को चीरती 
'सूरज' की रश्मियाँ
क्षितिज संवारती
'धरा' को निखारती
और बादलों के सफ़ेद धागों से
बुनती हैं सपनों की थान
जब जब मन नहीं पढ़ पाती
मेरी कराती मुझसे पहचान
उदास पलों में मुझसे कहती
धीरज धरो खुद को सम्हालो
छूना है तुम्हे वो नीला आसमान

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