इंतज़ार.....
जाने कब से वो कर रहा था इंतज़ार
पेड़ से टेक लगाये
अगले तीन गाँव पार था उसका प्यार
रात भर जागने के बाद
धुंधलके सुनी थी इक आहट
क़दमों की
चौंक गया
हाथ बढ़ा छूने के लिए
उसे जिसके लिए
देख रहा था वो रास्ता
'और कब तक ' कह पाया
उसकी बढ़ी हथेलियां भर दी गयी
शेफाली के फूलों से
ये कहते
'इन्हे फिर से लगा सकते हो '?
पेड़ पर
वापस
कैसा जवाब था
कदम मुड़ चुके थे
वो सोचता खड़ा रह गया
क्या इतना असम्भव है
बिछड़े हुओं का मिलना
इतनी शताब्दियों बाद भी
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