Wednesday, 12 September 2012

नदी सिखाती है ...

पता नहीं कैसे दिन आ गए आप कहतें हैं सब अच्छा चल रहा तो कोई भरोसा नहीं करता ...:)आप  सहज रूप से यदि समझौते करते हैं तो ये बंधन ना लग के एक अनोखी ख़ुशी देते  है  | मुझे प्रकृति का सानिध्य अच्छा लगता है घर से बमुश्किल १०० मीटर  की दूरी में एक नदी बहती है वो अक्सर अपनी फीलिंग्स शेयर करती है मेरे साथ ...एक बहुत बड़ा बांध बना आंकड़े कहते हैं करीब चार सौ गाँव को इनका फायदा मिलेगा  हाँ मै सिर्फ पोजिटिव ही इकठ्ठा करती हूँ ...दिमागी खलल है शायद ..:)..मैं विषयांतर नहीं करते हुए नदी की बात करूंगी...:) मुझे प्रकृति हमेशा सब से बड़ी शिक्षक लगी है...मेरे विषय में यही शामिल होता है 

कितने दरिया 
कितनी घाटियाँ 
फर्लान्ग्ती आयी थी वो 
जैसे सब कुछ 
बहा कर ले जाना चाहती थी 
अच्छा बुरा 
सब 
एक आध्यात्मिक भावना से 
नदी 
उसे व्यावहारिक ज्ञान नहीं समझा था 
खुद को वेगवती समझने वाली 
उस'वन्या' को 
आगे जा कर थमना पड़ा था 
एक बाँध की कगार में 
लेट कर वो सोचती है 
क्या यही प्रारब्ध है 
......और  फ़िर  खो जाती है 
असंख्य नहरों और पनचक्कियों पर 
ये सोचते उसे अच्छा लगने लगता है 
मै क्या कर लेती 
समुन्दर से  मिल के 
थोड़ी मिट्टियाँ झाड़ लेती 
बस ना 
आज रुकी हूँ 
तो इतनो का भला हो रहा है 
यदि ऐसा है तो मै यहीं सही 
और वेगवती की ठांठे मारती लहरें 
खामोश हो जाती हैं 
पत्थरों  के दीवार के पार से मुस्कुराते 
वो अब अपने रूप का विस्तार देख रही थी 

Sunday, 2 September 2012

शाम की बेचैनियाँ....





'जब एक ढलते शाम की बेचैनियाँ सताती हैं '

मत बांधो किसी बंधन में 
उड़ने दो स्वछन्द गगन में 
कल्पनाओं  की वीथिका में भटकने दो 
मुझे मुझमे खुद को तलाशने दो 
सारी कोशिशे मेरे सीखने की है 
शायद 
तुम  भी गुजरे होंगे इन गलियों से 
एक घुटन 
एक बेचैनी को महसूस होगा 
जब सारा जहाँ  एक पिंजरा सा लगा होगा
ये वैसा ही सफ़र है 
मुझे चलने दो 
बस .... 
बिना कुछ कहे 
आखिर तुम भी जानते हो 
'विलंबित' हो या' द्रुत
'सम' पर ख़त्म हो जाता है